तंत्रो के अंतर्गत चार प्रकार के विचारों या उपयोगों को सम्मिलित किया गया हैं।
१. ज्ञान, तंत्र ज्ञान के अपार भंडार हैं।
२. योग, अपने स्थूल शारीरिक संरचना को स्वस्थ रखने हेतु।
३. क्रिया, भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाले देवी-देवताओं से सम्बंधित पूजा विधान।
४. चर्या, व्रत तथा उत्सवों में किये जाने वाले कृत्यों का वर्णन।
इनके अतिरिक्त दार्शनिक दृष्टि से तंत्र तीन भागों में विभाजित हैं १. द्वैत २. अद्वैत तथा ३. द्वैता-द्वैत।
तांत्रिक साधनाओं के प्रादुर्भाव से सम्बंधित दो प्रकार की धारणाएँ हैं! कुछ मानते हैं तंत्र सर्वप्रथम कश्मीर से उदित हुआ तथा कुछ मानते हैं तांत्रिक साधनाओं का उदय बंगाल प्रान्त से हुआ। मुख्य रूप से बंगाल के तांत्रिकों ने तंत्र साधनाओं का संपूर्ण भारत वर्ष, तिब्बत, चीन में खूब प्रचार प्रसार किया, तथा आज भी बंगाल! तंत्र साधनाओं हेतु विख्यात हैं। बंगाल से तंत्र विद्या, इंद्र-जाल, काला जादू का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं तथा तंत्र पद्धतिओं की सिद्धि हेतु प्रयुक्त होने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण शक्ति पीठ इसी प्रान्त में विद्यमान हैं; जैसे कामाख्या पीठ।
कामाख्या पीठ! तंत्र-पीठों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली माना जाता हैं, जो बंगाल-आसाम प्रान्त में हैं। आदि काल से ही यह पीठ, इंद्र-जाल तथा काला जादू हेतु प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा त्रिपुरेश्वरी, कालिका, त्रिसोता या भ्रामरी, नलहटेश्वरी, फुल्लौरा, कंकाली, नंदिनी, योगेश्वरी, महिषमर्दिनी, कुमारी, कपालिनी, अपर्णा, महालक्ष्मी, श्रावणी, विमला, जयंती, जुगाड़्या, भवानी, मंगल-चंडी, बाहुला, सुगंधा शक्ति पीठ बंगाल प्रान्त में ही विद्यमान हैं; तंत्र क्रियाएं इन्हीं शक्ति पीठों पर अधिक तथा शीघ्र फलदायी होती हैं। तंत्र के अंतर्गत बहुत प्रकार की अलौकिक शक्ति प्राप्त करने का वर्णन हैं, जिनका प्रयोग घोर कर्मों में किया जाता हैं, मारण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन, मोहन घोर कर्मों के श्रेणी में आते हैं। परन्तु इन कर्मों को सामाजिक सुरक्षा तथा उपकार हेतु भी किया जाता हैं।
तंत्र-विद्या का सम्बन्ध उत्पत्ति, विनाश, साधना, अलौकिक शक्तियों से होते हुए भी इसका मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार मोक्ष ही सर्वोत्तम तथा सर्वोच्च प्राप्य पद हैं। मोक्ष यानी जन्म तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अपने आत्म-तत्व को ब्रह्म में विलीन करना मोक्ष कहलाता हैं; जीव ८४ लाख योनि प्राप्त करने के पश्चात मानव देह धारण करता हैं। तंत्रों के अनुसार मानव शरीर ३ करोड़ नाड़ियों से बना हैं तथा इनमें प्रमुख इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना हैं तथा यह मानव देह के अंदर रीड की हड्डी में विद्यमान हैं। तंत्र-विद्या द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर, इन्हीं तीन नाड़ियों द्वारा ब्रह्म-रंध तक लाया जाता हैं, यह प्रक्रिया पूर्ण योग-मग्न कहलाता हैं तथा अपने अंदर ऐसी शक्तियों को स्थापित करता हैं जिससे व्यक्ति अपने इच्छा अनुसार हर कार्य कर सकता हैं।