देवी
आद्या शक्ति, नाना स्वरूपों में अवतरित हो, संपूर्ण ब्रह्माण्ड के समस्त तत्वों में विद्यमान हैं। इनके अनगिनत अवतारी रूप हैं,
त्रि-देवों के रूप में
ब्रह्मा, विष्णु तथा भगवान शिव हैं तथा
त्रि-देवियों या महा देवियों से स्वरूप में ये ही
महा काली, महा लक्ष्मी, महा सरस्वती हैं।
महाविद्याओं, के रूप में ये ही
१० महाविद्या, काली, तारा, श्री विद्या त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी तथा कमला हैं।
नव दुर्गा के रूप में ये ही
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री हैं। समस्त योगिनियां, जो
पार्वती की सहचरियां या सहेलियां हैं,
भगवान विष्णु की योगमाया शक्ति के रूप में देवी ही
महामाया या योगमाया नाम से विख्यात हैं। जब भी इस संसार के सञ्चालन हेतु देवताओं को संकट का सामना करना पड़ा है, तब-तब इन्हीं देवी ने भिन्न-भिन्न रूपों में अवतरित हो, देवताओं की सहायता की तथा उन्हें संकट मुक्त किया। असुर जो सर्वदा ही स्वर्ग लोक के राज्य को प्राप्त कर, नाना प्रकार के दिव्य भोगो को भोगने की अभिलाषा रखते थे,
ब्रह्मा तथा शिव की कठोर तपस्या कर, उन से कोई वर प्राप्त कर लेते थे। असुर-दैत्य, स्वर्ग पर आक्रमण कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लेते थे तथा समस्त देवताओं के भागों को स्वयं भोगते थे। एसी परिस्थिति में देवताओं को इधर-उधर भटकना पड़ता था तथा स्वर्ग लोक के समस्त भोगो को असुर ही भोगते थे। जब-जब देवताओं के सनमुख, इस प्रकार की विपरीत परिस्थिति प्रस्तुत हुई, इन्हीं
आद्या शक्ति देवी अपने नाना अवतारों में अवतरित हो, समस्त दानवों को युद्ध में परास्त किया तथा देवताओं को भय मुक्त कर उन्हें उनके पद पर पुनः अधिष्ठित किया।
सर्वप्रथम
भगवान विष्णु जब मधु और कैटभ से ५००० वर्ष तक युद्ध करते हुए थक गए, उन्होंने सहायता हेतु
आद्या शक्ति की आराधना की। फल स्वरूप
आद्या शक्ति प्रकट हुई, और उन्होंने
भगवान विष्णु से कहा की मैं इन्हें अपनी माया से मोहित कर दूंगी, तब आप इनका वध कर देना।
देवी आद्या शक्ति से मोहित हुए ये दोनों महा दैत्यों ने
भगवान विष्णु को आशीर्वाद दिया की, जहाँ न जल हो और न ही भूमि, ऐसे स्थान में उन का वध करें। उस समय प्रलय पश्चात सर्वत्र जल ही जल व्याप्त था,
भगवान विष्णु ने अपनी जंघा पर उन महा दैत्यों का सर रख कर अपने सुदर्शन चक्र से उनके मस्तक को देह से अलग कर दिया। दैत्य राज
महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ, रक्तबीज इत्यादि, समस्त दैत्यों का देवी ही अपने बल तथा पराक्रम से वध कर, देवताओं को भय मुक्त किया। जब-जब देवताओं पर विपत्ति या संकट उपस्थित हुआ, सभी देवों ने मिल कर इन्हीं
आद्या शक्ति की आराधना-स्तुति, वन्दना की, तथा इन्हीं शक्ति ने अपने तेजो बल पराक्रम से समस्त संसार को भय मुक्त किया। इन के मुख्य नमो में
दुर्गा, तथा
काली नाम सर्वाधिक प्रचलित हैं।
दुर्गमासुर नाम के दैत्य का वध करने के कारण इन देवी,
दुर्गा नाम से विख्यात हुई, साथ ही दुर्गम संकटों से मुक्ति हेतु भी जगत-प्रसिद्ध हुई। सांसारिक कष्टों ने निवारण हेतु, दुर्गम संकटों से मुक्त करने वाली
दुर्गा, के शरण में जाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं।
वास्तव में शक्ति ही, सञ्चालन, निर्माण तथा विध्वंस का प्रतीक हैं, शक्ति या बल के अभाव में स्थिति शून्य ही रहेगी।
आद्या शक्ति ही वह बल या कहे तो प्रेरणा का श्रोत हैं, जिनसे इस चराचर जगत के सुचारु सञ्चालन का कार्य पूर्ण होता हैं। सूर्य से प्रकाश, हवा का वहन, बादल द्वारा जल वर्षा, प्रकृति में घटित होने वाली सभी जैविक तथा अ-जैविक क्रियाएं शक्ति के अभाव में अस्तित्व में नहीं रह सकती हैं। हिन्दू शास्त्र, तंत्रों के अनुसार पत्नी को शक्ति का पद प्राप्त है, अर्थात पुरुष की शक्ति उसकी पत्नी ही हैं। चराचर संपूर्ण जगत की जन्म प्रदाता होने के परिणाम स्वरूप माता के रूप में पूजिता हैं। जीवन की उत्पत्ति तथा विकास, हर चरण मातृ शक्ति द्वारा ही परिचालित है, परिणाम स्वरूप शक्ति संसार में सर्वोपरि है।
श्वेताश्वेत उपनिषद के अनुसार
देवी आद्या शक्ति स्वयं त्रि-शक्ति के रूप में अवतरित हुई हैं।
आद्या शक्ति, एक होते हुए भी, लोक कल्याण के अनुरूप, भिन्न-भिन्न रूपों में अवतरित हो, ज्ञान, बल तथा क्रिया रूपी शक्तियों से अवतरित होकर
महा-काली, महा-लक्ष्मी तथा महा-सरस्वती रूप धारण करती हैं। परिणाम स्वरूप देवी त्रि-शक्ति, नव-दुर्गा, दस महाविद्या तथा ऐसे अन्य अनेक अवतारी नामों से पूजिता हैं।