देवी मातंगी का शारीरिक वर्ण गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण का है, अपने मस्तक पर देवी अर्ध चन्द्र धारण करती हैं तथा देवी तीन नशीले नेत्रों से युक्त हैं। देवी अमूल्य रत्नों से युक्त रत्नमय सिंहासन पर बैठी हैं एवं नाना प्रकार के मुक्ता-भूषण से सुसज्जित हैं, जो उनकी शोभा बड़ा रहीं हैं। कहीं-कहीं देवी! कमल के आसन तथा शव पर भी विराजमान हैं। देवी मातंगी गुंजा के बीजों की माला धारण करती हैं, लाल रंग के आभूषण देवी को प्रिय हैं तथा सामान्यतः लाल रंग के ही वस्त्र-आभूषण इत्यादि धारण करती हैं। देवी सोलह वर्ष की एक युवती जैसी स्वरूप धारण करती हैं जिनकी शारीरिक गठन पूर्ण तथा मनमोहक हैं। देवी चार हाथों से युक्त हैं, इन्होंने अपने दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर रखी हैं तथा बायें हाथों में खड़ग धारण करती हैं एवं अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। इनके आस पास पशु-पक्षियों को देखा जा सकता हैं, सामान्यतः तोते इनके साथ रहते हैं।
शक्ति संगम तंत्र के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थान कैलाश शिखर पर गये। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गए तथा उन्होंने वह खाद्य प्रदार्थ शिव जी को भेट स्वरूप प्रदान की। भगवान शिव तथा पार्वती ने, उपहार स्वरूप प्राप्त हुए वस्तुओं को खाया, भोजन करते हुए खाने का कुछ अंश नीचे धरती पर गिरे; उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली दासी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई। देवी का प्रादुर्भाव उच्छिष्ट भोजन से हुआ, परिणामस्वरूप देवी का सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन सामग्रियों से हैं तथा उच्छिष्ट वस्तुओं से देवी की आराधना होती हैं। देवी उच्छिष्ट मातंगी नाम से जानी जाती हैं।
प्राणतोषिनी तंत्र के अनुसार, एक बार पार्वती देवी ने, अपने पति भगवान शिव से अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाकर, अपने माता तथा पिता से मिलने की अनुमति मांगी। परन्तु, भगवान शिव नहीं चाहते थे की वे उन्हें अकेले छोड़ कर जाये। भगवान शिव के सनमुख बार-बार प्रार्थना करने पर, उन्होंने देवी को अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाने की अनुमति दे दी। साथ ही उन्होंने एक शर्त भी रखी कि! वे शीघ्र ही माता-पिता से मिलकर वापस कैलाश आ जाएगी। तदनंतर, अपनी पुत्री पार्वती को कैलाश से लेन हेतु, उनकी माता मेनका ने एक बगुला वाहन स्वरूप भेजा। कुछ दिन पश्चात भगवान शिव, बिन पार्वती के विरक्त हो गए तथा उन्हें वापस लाने का उपाय सोचने लगे; उन्होंने अपना भेष एक आभूषण के व्यापारी के रूप में बदला तथा हिमालय राज के घर गए। देवी इस भेष में देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे, वे पार्वती के सनमुख गए और अपनी इच्छा अनुसार आभूषणों का चुनाव करने के लिया कहा। पार्वती ने जब कुछ आभूषणों का चुनाव कर लिया तथा उनसे मूल्य ज्ञात करना चाहा! व्यापारी रूपी भगवान शिव ने देवी से आभूषणों के मूल्य के बदले, उनसे सम्मोह की इच्छा प्रकट की। देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हुई अंततः उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तिओं से उन्होंने पहचान ही लिया। तदनंतर देवी सम्भोग हेतु तैयार हो गई तथा व्यापारी से कुछ दिनों पश्चात आने का निवेदन किया। कुछ दिनों पश्चात देवी पार्वती भी भेष बदल कर, भगवान शिव के सनमुख कैलाश पर्वत पर गई। भगवान शिव अपने नित्य संध्योपासना के तैयारी कर रहे थे। देवी पार्वती लाल वस्त्र धारण किये हुए, बड़ी-बड़ी आँखें कर, श्याम वर्ण तथा दुबले शरीर से युक्त अपने पति के सनमुख प्रकट हुई। भगवान शिव ने देवी से उनका परिचय पूछा, देवी ने उत्तर दिया कि वह एक चांडाल की कन्या हैं तथा तपस्या करने आई हैं। भगवान शिव ने देवी को पहचान लिया तथा कहाँ! वे तपस्वी को तपस्या का फल प्रदान करने वाले हैं। यह कहते हुए उन्होंने देवी का हाथ पकड़ लिया और प्रेम में मग्न हो गए। तत्पश्चात, देवी ने भगवान शिव से वार देने का निवेदन किया; भगवान शिव ने उनके इसी रूप को चांडालिनी वर्ण से अवस्थित होने का आशीर्वाद प्रदान किया तथा कई अलौकिक शक्तियां प्रदान की।
देवी हिन्दू समाज के सर्व निम्न जाती चांडाल या डोमसे सम्बद्ध हैं, देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल। (चांडाल श्मशान में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं)।
तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही सिद्ध होना) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोग-विलास में पारंगत होने हेतु की जाती हैं। देवी मातंगी चौंसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं में निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं।
नारदपंचरात्र के अनुसार, कैलाशपति भगवान शिव को चांडाल तथा देवी शिवा को ही उछिष्ट चांडालिनी कहा गया हैं। एक बार मतंग मुनि ने सभी जीवों को वश में करने के उद्देश्य से, नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण वन में देवी श्री विद्या त्रिपुरा की आराधना की। मतंग मुनि के कठिन साधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरसुंदरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का रूप धारण किया; उन्हें राज मातंगी कहा गया एवं देवी मातंगी का ही एक स्वरूप हैं। देवी, मतंग कन्या के नाम से भी जानी जाती हैं कारणवश इन्हें मंतागी नाम से जाना जाता हैं। देवी के सनमुख बैठा तोता ह्रीं मन्त्र का उच्चारण करता है, जो बीजाक्षर हैं। कमल सृष्टि का, शंख पात्र ब्रह्मरंध, मधु अमृत, शुक या तोता शिक्षा का प्रतिक हैं।
देवी के अन्य विख्यात नाम उछिष्ट साम मोहिनी, लघु श्यामा, राज मातंगी, वैश्य मातंगी, चण्ड मातंगी, कर्ण मातंगी, सुमुखि मातंगी, षडाम्नायसाध्य इत्यादि हैं। रति, प्रीति, मनोभाव, क्रिया, शुधा, अनंग कुसुम, अनंग मदन तथा मदन लसा, देवी मातंगी की आठ शक्तियां हैं।