एक बार शिव जी के द्वारा ब्रह्मा जी का एक सर कट गया था; दक्ष के पिता ब्रह्मा जी पांच मस्तकों से युक्त थे, अतः वे शिव जी को ब्रह्म हत्या का दोषी मानते थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने 'बृहस्पति श्रवा' नाम के यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने तीनों लोकों से समस्त प्राणी, ऋषि, देवी-देवता, मनुष्य, गन्धर्व इत्यादि सभी को निमंत्रित किया। दक्ष! भगवान शिव से घृणा करते थे परिणामस्वरूप, उन्होंने उनसे सम्बंधित किसी को भी अपने यज्ञ आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। देवी देवी सती ने जब देखा की तीनों लोकों से समस्त प्राणी उनके पिता जी के यज्ञ आयोजन में जा रहे हैं, उन्होंने अपने पति भगवान शिव ने अपने पिता के घर, यज्ञ आयोजन में जाने कि अनुमति मांगी। भगवान शिव! दक्ष के व्यवहार से परिचित थे, उन्होंने देवी सती को अपने पिता के घर जाने की अनुमति नहीं दी तथा नाना प्रकार से उन्हें समझाने की चेष्टा की। परन्तु देवी देवी सती नहीं मानी, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपने गणो के साथ जाने की अनुमति दे ही दी। देवी सती अपने पिता दक्ष से उनके यज्ञानुष्ठान स्थल में घोर अपमानित हुई। दक्ष ने अपनी पुत्री देवी सती को स्वामी सहित, खूब उलटा सीधा कहा। परिणामस्वरूप, देवी अपने तथा स्वामी के अपमान से तिरस्कृत हो, यज्ञ में आये सम्पूर्ण यजमानों के सामने देखते ही देखते अपनी आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी, उन्होंने अपने आप को योग-अग्नि में भस्म कर दिया।
भगवान शिव को जब इस घटना का ज्ञात हुआ, वे अत्यंत क्रुद्ध हो गए। उन्होंने अपने जटा के एक टुकड़े से वीरभद्र को प्रकट किया, जो स्वयं महाकाल के ही स्वरूप थे तथा उस जटा के एक भाग से महाकाली देवी का भी प्राकट्य हुआ। उन्होंने वीरभद्र तथा महाकाली को अपने गणो के साथ, दक्ष यज्ञ स्थल में सर्वनाश करने की आज्ञा दी। भगवान शिव के आदेशानुसार दोनों ने यज्ञ का सर्वनाश कर दिया, दक्ष का गाला काट उस के सर की आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी। तदनंतर भगवान शिव यज्ञ स्थल में आये तथा अपनी प्रिय पत्नी देवी सती के शव को कंधे पर उठा, तांडव नृत्य करने लगे। (शिव का नटराज स्वरूप, तांडव नित्य का ही प्रतीक हैं।) भगवान शिव के क्रुद्ध हो तांडव नृत्य करने के परिणामस्वरूप, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया तथा विध्वंस होने लगा। तीनों लोकों को भय मुक्त करने हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से, देवी सती के मृत देह के टुकड़े कर दिए तथा वो भारत वर्ष के विभिन्न स्थानों में पतित हुए। जो देवी देवी सती के पवित्र ५१ शक्ति पीठों के नाम से विख्यात हैं; देवी नाना रूपों में इन पवित्र स्थानों की शक्ति हैं तथा इनके भैरव के रूप में भगवान शिव भी प्रत्येक स्थान पर अवस्थित हैं।
शिव चरित्र के अनुसार, सती शक्ति पीठों की संख्या ५१ हैं।
कालिका पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या २६ हैं।
श्री देवी भागवत, पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या १०८ हैं।
तंत्र चूड़ामणि तथा मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या ५२ हैं।