देवी कमला स्वरूप से अत्यंत ही मनोहर तथा मनमोहक हैं, देवी का शारीरिक वर्ण स्वर्णिम आभा लिया हुए हैं। देवी का स्वरूप अत्यंत सुन्दर हैं, मुख मंडल पर हलकी सी मुस्कान हैं, कमल के सामान इनके तीन नेत्र हैं, अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, वे अपने ऊपर की दोनों भुजा में कमल पुष्प धारण करती हैं तथा निचे के दोनों भुजाओं से वर एवं अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी कमला नाना प्रकार के अमूल्य रत्न जड़ित आभूषण धारण करती हैं तथा कौस्तुभ मणि से सुसज्जित मुकुट देवी के मस्तक पर सुसज्जित हैं; देवी सुन्दर रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। देवी सागर मध्य में, कमल पुष्पों से घिरी हुई तथा कमल के ही आसन पर विराजमान हैं। हाथियों के समूह देवी को अमृत के कलश से स्नान करा रहे हैं।
श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला के उद्भव की कथा प्राप्त होती हैं। देवी कमला का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ; एक बार देवताओं तथा दानवों ने समुद्र का मंथन किया, जिनमें अमृत प्राप्त करना मुख्य था। दुर्वासा मुनि के श्राप के कारण सभी देवता लक्ष्मी या श्री हीन हो गए थे, यहाँ तक ही भगवान विष्णु को भी लक्ष्मी जी ने त्याग कर दिया था। पुनः श्री सम्पन्न होने हेतु या नाना प्रकार के रत्नों को प्राप्त कर समृद्धि हेतु, देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र का मंथन किया। समुद्र मंथन से १८ रत्न प्राप्त हुए, उन १८ रत्नों में धन की देवी 'कमला' तथा निर्धन की देवी 'निऋति या अलक्ष्मी' नमक दो बहनों का प्रादुर्भाव हुआ था। जिनमें, देवी कमला भगवान विष्णु को दे दी गई और निऋति दुसह नमक ऋषि को। देवी, भगवान विष्णु से विवाह के पश्चात, कमला-लक्ष्मी नाम से विख्यात हुई। तत्पश्चात देवी कमला ने विशेष स्थान पाने हेतु, 'श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी' की कठोर आराधना की; उनकी अराधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरा ने उन्हें श्री उपाधि प्रदान की तथा महाविद्याओं में स्थान दिया। उस समय से देवी का सम्बन्ध पूर्णतः धन, समृद्धि तथा सुख से हैं।
भगवान विष्णु से विवाह होने के कारण देवी का सम्बन्ध सत्व-गुण से हैं तथा वे वैष्णवी शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। भगवान विष्णु, देवी कमला के भैरव हैं। शासन, राज पाट, मूल्यवान धातु तथा रत्न जैसे पुखराज, पन्ना, हीरा इत्यादि, सौंदर्य से सम्बंधित सामग्री, जेवरात इत्यादि देवी से सम्बंधित हैं देवी इन भोग-विलास के वस्तुओं की प्रदाता हैं। देवी की उपस्थिति तीनों लोकों को सुखमय तथा पवित्र बनती हैं अन्यथा इनकी बहन अलक्ष्मी या निऋति निर्धनता तथा अभाव के स्वरूप में वास करती हैं। व्यापारी वर्ग, शासन से सम्बंधित कार्य करने वाले देवी की विशेष तौर पर आराधना, पूजा इत्यादि करते हैं। देवी हिन्दू धर्म के अंतर्गत सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं तथा समस्त वर्गों द्वारा पूजिता हैं, तंत्र के अंतर्गत देवी की पूजा तांत्रिक-लक्ष्मी रूप से की जाती हैं; तंत्रों के अनुसार देवी समृद्धि, सौभाग्य और धन प्रदाता हैं।
देवी की विशेष रूप से पूजा आराधना दीपावली के दिन की जाती हैं, देवी से सम्बंधित दीपावली एक महा-पर्व हैं जो समस्त जातिओं द्वारा मनाई जाती हैं। भारत वर्ष के पूर्वी भाग में रहने वाले, शक्ति पूजा से सम्बंधित समाज दीपावली के दिन देवी काली के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं तथा वैष्णव संप्रदाय से सम्बंधित लोग देवी महा-लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वास्तव में यह दोनों देवियाँ सर्वरूपा आद्या शक्ति के ही दो अलग रूप हैं। देवी का सम्बन्ध प्रकाश से होने के कारण दीपावली के पर्व को प्रकाश-पर्व भी कहा जाता हैं तथा सभी अपने घरों तथा अन्य स्थानों पर सूर्य अस्त पश्चात दीपक जलाते हैं, देवी का आगमन करते हैं।
एक रूप में देवी, सच्चिदानंदमयी लक्ष्मी हैं; जो भगवान विष्णु से अभिन्न हैं तथा अन्य रूप में धन तथा समस्त प्रकृति संसाधनों की अधिष्ठात्री देवी हैं। त्रिलोक में देवता, दैत्य तथा मानव देवी के कृपा के बिना पंगु हैं। देवी कमला की आराधना स्थिर लक्ष्मी (धन-संपत्ति-वैभव), संतान तथा सुख-समृद्धि प्राप्ति के लिया की जाती हैं। अश्व, रथ, हस्ती, वाहन के साथ उनका सम्बन्ध राज्य वैभव का सूचक हैं।
देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के अधिपति हैं तथा कुबेर देवताओं के कोषागार अध्यक्ष के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं।
मद तथा अहंकार में चूर देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि ने शाप दिया कि! "समस्त देवता लक्ष्मी हीन हो जाये"; जिसके परिणामस्वरूप देवता निस्तेज, सुख-वैभव से वंचित, धन तथा शक्ति हीन हो गए। यह देख, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदर्शों पर चलकर उनका शिष्य दैत्य-राज बलि ने स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। समस्त देवता, सुख, वैभव, संपत्ति, समृद्धि से वंचित हो पृथ्वी पर छुप कर रहने लगे, उनका जीवन बड़ा ही कष्ट मय हो गया था। पुनः सुख, वैभव, साम्राज्य, सम्पन्नता की प्राप्ति हेतु भगवान विष्णु के आदेशानुसार, देवताओं ने दैत्यों से संधि की तथा समुद्र का मंथन किया। जिससे १४ प्रकार के रत्न प्राप्त हुए, जिनमें देवी कमला भी थीं।
भगवान श्री हरि की नित्य शक्ति देवी कमला के प्रकट होने पर, बिजली के समान चमकीली छठा से दिशाएँ जगमगाने लगी, उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमा से सभी को अपने ओर आकर्षित किया। देवता, असुर, मनुष्य सभी देवी कमला को प्राप्त करने के निमित्त उत्साहित हुए, स्वयं इंद्र ने देवी के बैठने हेतु अपना दिव्य आसन प्रदान किया। श्रेष्ठ नदियों ने सोने के घड़े में भर-भर कर पवित्र जल से देवी का अभिषेक किया, पृथ्वी ने अभिषेक हेतु समस्त औषधियां प्रदान की। गऊओं ने पंचगव्य, वसंत ऋतु ने समस्त फूल-फल तथा ऋषियों ने विधि पूर्वक देवी का अभिषेक सम्पन्न किया। गन्धर्वों ने मंगल गान किये, नर्तकियां नाच-नाच कर गाने लगी, बादल सदेह होकर मृदंग, डमरू, ढोल, नगारें, नरसिंगे, शंख, वेणु और वीणा बजाने लगे, तदनंतर देवी कमला पद्म (कमल) के सिंहासन पर विराजमान हुई। दिग्गजों ने जल से भरे कलशों से उन्हें स्नान कराया, ब्राह्मणों ने वेद मन्त्रों का पाठ किया। समुद्र ने देवी को पीला रेशमी वस्त्र धारण करने हेतु प्रदान किया, वरुण ने वैजन्ती माला प्रदान की जिसकी मधुमय सुगंध से भौंरे मतवाले हो रहे थे। विश्वकर्मा ने भांति-भांति के आभूषण, देवी सरस्वती ने मोतियों का हार, ब्रह्मा जी ने कमल और नागों ने दो कुंडल देवी कमला को प्रदान किये। इसके पश्चात देवी कमला ने अपने हाथों से कमल की माला लेकर, सर्व गुण-सम्पन्न पुरुषोत्तम श्री हरि विष्णु के गले में डालकर उन्हें अपना आश्रय बनाया, उनका वर रूप में चयन किया।
लक्ष्मी जी को दानव, मनुष्य, देवता सभी प्राप्त करना चाहते थे, परन्तु उन्होंने श्री हरि विष्णु को ही वर रूप में चयनित किया। देवी कमला ने मन ही मन विचार किया! वहां कोई महान तपस्वी थे परन्तु उनका क्रोध पर विजय नहीं था, कोई महान ज्ञानी था परन्तु उनमें अनासक्त नहीं थीं, कई बड़े महत्वशाली थे परन्तु वे काम को नहीं जीत पाए थे। किसी के पास ऐश्वर्य बहुत था परन्तु उन्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ता हैं, कोई धर्मचारी तो हैं पर अन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का बर्ताव नहीं रखते हैं। किन्हीं में त्याग तो हैं परन्तु केवल मात्र त्याग ही मुक्ति का कारण नहीं बन सकता, कई वीर हैं परन्तु काल के पंजे में हैं, कुछ महात्माओं में विषयासक्त नहीं हैं परन्तु वे निरंतर अद्वैत समाधि में लीन रहते हैं। बहुत से ऋषि-मुनि ऐसे हैं जिनकी आयु बहुत अधिक हैं परन्तु उनका शील-मंगल देवी के योग्य नहीं था, किन्हीं में दोनों ही बातें हैं परन्तु वे अमंगल वेश धारण किये रहते हैं, बचे एक केवल मात्र श्री विष्णु, उन्हीं में सर्व मंगलमय गुण सर्वदा निवास करते हैं तथा स्थिर रहते हैं। इस प्रकार सोच विचार कर श्री कमला देवी ने चिर अभीष्ट भगवान को ही वर के रूप में चयनित किया, क्योंकि उनमें सर्वदा सद्गुण निवास करते हैं।