प्राचीन काल में मनु नाम के एक तपस्वी राजा थे, अपने पुत्र पर समस्त राज्य का भर देकर वे योग अभ्यासी हो गए थे। मलय देश के एक भाग में सुख तथा दुःख में समभाव रहकर, वे उत्तम योग को प्राप्त कर चुके थे। मनु की तपस्या से संतुष्ट हो, कमलासन ब्रह्मा जी उन्हें वरदान देने हेतु साक्षात् समुपस्थित हुए तथा इच्छित वरदान मांगने के लिए कहा। मनु ने ब्रह्मा जी से कहा ! जिस समय इस सम्पूर्ण भूतों के समुदाय का तथा समस्त स्थावर और चार सृष्टि का प्रलय काल उपस्थित हो, उस घोर भयंकर समय पर, “मैं सबकी रक्षा करने के कर्ण से असमर्थ हो जाऊँ।” ब्रह्मा जी एवमस्तु कह कर वही पर अंतर्ध्यान हो गए। एक समय माँ मनु आश्रम में अपने पितृ गण के निमित्त तर्पण कर रहे थे तथा उनके हाथ में एक छोटी सी मछली, जल के साथ ही आ गई। उन्होंने उस मछली को देख कर उसकी रक्षा करने के लिए एक करकोदर में रख दिया, परन्तु एक ही रात्रि में वह १६ अंगुल तक बढ़ गया। इस प्रकार मत्स्य रूप में परिवर्तित होकर मनु से “मेरी रक्षा करो” कहा। राजा ने उस जलचरी को लेकर एक मानिक में डाल दिया तथा वहां पर भी वह एक रात्रि में विस्तृत हो तीन हाथ बड़ा हो गया। उस मत्स्य ने तदनंतर, सूर्य पुत्र मनु से बड़े ही विनम्र स्वर से कहा ! “मेरी रक्षा करो, मैं इस समय आप के शरण में आया हूँ”। मनु ने उस मत्स्य को कुएं में डाल दिया, पहले की तरह ही एक ही रात में मत्स्य और अधिक विस्तृत आकार वाला हो गया। इसके अनंतर मनु ने उस मत्स्य को गंगा नदी मैं प्रक्षिप्त कर दिया, परन्तु वहाँ भी उसका आकार और अधिक विस्तृत हो गया। तदनंतर, राजा मनु ने उस मत्स्य को समुद्र में प्रक्षिप्त कर दिया, वहां भी वो सम्पूर्ण समुद्र में व्याप्त होकर समुपस्थित हो गया। इस पर राजा मनु उस मत्स्य से अत्यंत भयभीत हो गए, उन्होंने मत्स्य से उसका परिचय ज्ञात करना चाहा, इस पर उन्हें संदेह हुआ की ये साक्षात् भगवान वासुदेव ही हैं।
मनु ने कुछ विचार किया, जिस पर वे पूर्ण रूप से निश्चित हो गए की ये साक्षात् केशव ही हैं, उन्होंने कहा हे केशव ! मैं आप को अच्छी तरह से पहचान गया हूँ, आप ही इस विशाल मत्स्य के रूप में उपस्थित होकर मेरे सनमुख प्रकट हुए हैं। आप को मेरा प्रणाम हैं। इस प्रकार जब राजा मनु ने श्री हरि विष्णु से निवेदन किया, उस समय मत्स्य स्वरूपी श्री हरि जनार्दन ने कहा ! बहुत अच्छा ! तुमने मुझे अच्छी तरह से पहचान लिया हैं। कुछ ही समय पश्चात पृथ्वी जाल मग्न हो जाएगी, जिससे परिणामस्वरूप समस्त पर्वत, वन, समस्त कानन इस मेदिनी के साथ जल में डूब जायेंगे। समस्त देवों के निकाय से निर्मित हुई एक बड़ी नाव या नौका, श्री जनार्दन ने राजा मनु को प्रदान किया तथा कहा ! यह नौका समस्त जीवों की रक्षा हेतु निर्मित की गई हैं। हे सुव्रत ! जो भी स्वदेज-अंडज-जरायुज और उदि्भज जीव हैं उस सब अनाथों को इस नौका में स्थान देकर आप उन सभी की रक्षा कीजिएगा। जिस समय यह नौका युगान्त की वायु से अभिहित हो यह नौका डोलने लगेगी, इस नौका को मुझ मीन या मत्स्य से संग से संयमित कर देना। इसके पश्चात नूतन सृष्टि के समय आप ही सम्पूर्ण जगत के प्रजापति होंगे। इस प्रकार से सत्ययुग के आदि काल में सर्वज्ञ और घृतिमान् नृप तथा देवों के द्वारा पूज्य मन्वंतर का भी अधिपति होगा।
मत्स्य अवतार ने मनु से कहा ! आज से ही धरातल पर वर्षा का अभाव हो जायेगा, सौ वर्षों के भीतर यहाँ घोर अकाल पड़ेगा, दुर्भिक्ष आ जायेगा। इसके उपरांत, पूर्ण तप्त अंगार के वर्ण के समान वर्ण वाले सप्त सूर्य सात दारुण रश्मियाँ में परिवर्तित हो जाएगी तथा जीवों के संहार का कार्य करेगी, बड़वानल अत्यंत भयंकर रूप धारण कर लेगा। पाताल लोक से भगवान संकर्षण के मुख से निकलने वाली विषाग्नि तथा भगवान रुद्र के ललाट के तीसरे नेत्र से निकलने वाली अग्नि घोर रूप धारण करेगी, फलस्वरूप तीनों लोक परम क्षोभ को प्राप्त हो जाएगी। देवता, ग्रह-नक्षत्र इत्यादि समस्त इस क्षोभ के ग्रस्त हो सशय को प्राप्त होगा। इस प्रकार सम्पूर्ण पृथ्वी भस्म के सदृश हो जाएगी, उस समय यहाँ समस्त आकाश मंडल ऊष्मा से तृप्त हो जायेगा। सम्वर्त्त-भिमानंद-द्रोण-चंड-वलाहक-विध्युत्पताक और शोण ये सात संसार के लय करने वाले मेघ हैं, अग्नि के तेज से संभूत इस मेदिनी को आप्लावित कर देंगे। तब सातों समुद्र एक रूप धारण करेंगे, तदनंतर तीनों लोक जलमग्न हो जायेगा। यहाँ समुद्र के अतिरिक्त और कुछ दृष्टिगोचर नहीं होगा, उस समय तुम इस वेद रूपी नौका में सभी को ले कर मुझ से संयमित कर, मेरी सिंह से इस नव को बाँध देना, मेरे प्रभाव से यहाँ नौका सुरक्षित रहेगी। इस आंतर-प्रलय में सोम, सूर्य, मैं, चारों लोकों सह ब्रह्मा जी, नर्मदा नदी, मार्कंडेय ऋषि, महेश जी, चारों वेद, विद्याओं द्वारा घिरे हुए पुराण और तुम्हारे साथ विश्व केवल हे ही बच पायेंगे। चाक्षुष मन्वंतर के प्रलय काल में, इस प्रकार जब सारी पृथ्वी एकार्णव हो जाएगी तथा तुम्हारे द्वारा सृष्टि का प्रारंभ होगा, तदनंतर, मैं वेदों को प्रवृत्त करूँगा, ऐसा कह कर भगवान् श्री हरि विष्णु वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
इस प्रकार समुत्पन्न योग सम स्थित होने पर, भगवान वासुदेव ने एक सींग वाले मत्स्य रूप में अवतार धारण किया तथा एक सर्प मनु के पास बह कर आ गया। प्रलय पश्चात तीनों लोकों के जल मग्न हो जाने पर, राजा मनु ने समस्त जीवित-अजीवित स्थावर तथा जंगम तत्वों, जीवों को नौका में स्थान दिया। मत्स्य अवतार धारी श्री हरि जनार्दन से उस नौका को एक भुजंग (सर्प) के द्वारा, मत्स्य भगवान के सींग में समागत किया गया। इस प्रकार धर्म के ज्ञाता मनु ने समस्त भूतों को समाकर्षित करके योग के द्वारा समा-रोपित किया।
हिन्दू धर्म से संबंधित नाना तथ्यों-कथाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर, प्रचार-प्रसार करना।