रचना या सृजन के अधिष्ठात्री देव ब्रह्मा जी, रचना से सम्बद्ध राजसिक गुण तथा ज्ञान तथा बुद्धि से युक्त, सावित्री तथा सरस्वती देवी के पति रूप में विख्यात। ब्रह्मा जी का प्रादुर्भाव, भगवान विष्णु के नाभि से निकले कमल पुष्प पर हुआ, तदनंतर ब्रह्मा से सर्वांग सुंदरी तरुणी स्त्री, 'सावित्री' उत्पन्न हुई, तथा इन्हीं दोनों से वेद उत्पन्न हुए। वेदों द्वारा ही सर्व प्रकार के ज्ञान का उद्भव हुआ, सम्पूर्ण ब्रह्मांड या तीनो लोक (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) के समस्त जीवित तथा निर्जीव तत्वों या पंच-भौतिक श्रृष्टि का निर्माण या सृजन ब्रह्मा जी तथा उनकी की शक्ति सावित्री द्वारा हुआ। इनके द्वारा दो प्रकार की श्रृष्टि उत्पन्न हुई, एक चैतन्य और दूसरी जड़, चैतन्य में समस्त जीव-जंतु, जिनमें इच्छा, अनुभूति, अहंभावना का समावेश हैं तथा प्राण रूप चैतन्य तत्व हैं तथा जड़ में ठोस, द्रव्य तथा वायु आते हैं जो विचारहीन तथा प्राणहीन हैं। ब्रह्मा जी पाँच मस्तको से युक्त थे, इनका एक मस्तक भगवान शिव द्वारा कट गया था। इसी घटना के कारण दक्ष जो प्रजापति तथा ब्रह्मा जी के पुत्र थे, शिव से घृणा करते थे। इस चराचर जगत में सभी इन्हीं ब्रह्मा जी के संतान हैं, देवी रति तथा काम देव इनके आखिरी मानस संतान हैं, काम देव तथा रति देवी के जन्म के पश्चात्, संतान उत्पत्ति या वृद्धि का दाईत्व इन्हें दे दिया गया। सर्वप्रथम, ब्रह्मा जी ने मानस श्रृष्टि की रचना की तथा अपने मन से पुत्रों तथा एक पुत्री, अपने शरीर के विभिन्न अंगो से प्रकट किया। अधिक जाने
चराचर जगत के पालनकर्ता 'श्री विष्णु, श्री हरि, श्री नारायण' इत्यादि नामों से विख्यात हैं तथा कमला या लक्ष्मी देवी के पति हैं। आद्या शक्ति काली, सात्विक स्वरूप में साक्षात् श्री हरि में विद्यमान योगमाया या महामाया हैं, सर्वदा क्षीर सागर के मध्य, शेष नाग की शय्या पर शयन करने वाले श्री विष्णु, से जो तामसी तथा संहारक शक्ति उत्पन्न होती हैं, वे योगमाया या महामाया ही हैं तथा भगवान विष्णु की शक्ति हैं। विष्णु शब्द का अर्थ उपस्थित होने से हैं, जो सर्वदा सभी तत्वों तथा स्थानों में व्याप्त हैं वही विष्णु हैं, परिणामस्वरूप हिन्दू धर्म के अंतर्गत, ब्रह्माण्ड के प्रत्येक तत्व या कण में परमेश्वर की अनुभूति की जाती हैं। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ पक्षी हैं तथा जगत पालन का कार्य-भार इन्हीं का हैं। देवताओं तथा चराचर श्रृष्टि की रक्षा हेतु, श्री विष्णु ने २३ अवतार धारण किये, शास्त्रों के अनुसार श्री विष्णु, २४ अवतार धारण करेंगे, जिनमें अंतिम २४वा कल युग के अंत में होगा। अधिक जाने
शंकर, हर्र, महादेव, महेश, कपाली, रुद्र, नीलकंठ, आदि अनेक नामों से भगवान शिव जन साधारण में जाने जाते हैं, संहारक शक्ति, तामसी गुण सम्पन्न तथा महान योगी हैं। इस चराचर जगत या ब्रह्माण्ड में विध्वंस या संहार से सम्बंधित कार्य का प्रतिपादन इन्हीं के द्वारा होता हैं, चराचर जगत द्वारा तज्य तत्व इन्हीं का हैं तथा उनका सही तरीके से विघटन भी। परिणामस्वरूप, शिव जी का सम्बन्ध समस्त विध्वंस होने वाली वस्तुओं या तत्वों से हैं, जैसे शव या मृत देह, श्मशान भूमि, गंजा, मदिरा, सर्प, विष इत्यादि। महाकाल के रूप में शिव ही मृत्यु के कारक हैं, मृत्यु के रूप हैं ये ही महाकाल बन प्राणी के सन्मुख उपस्थित होते हैं। स्वरूप से ये सर्वदा योगी के भेष में रहते हैं, शरीर में चिता भस्म लगते हैं, अपनी जटाओ में चन्द्र तथा आभूषण रूप में सर्प या नाग, रुद्राक्ष, हड्डियों माला धारण करते हैं। त्रिशूल, डमरू, कमंडल, मृत पशुओ के चर्म, चिमटा, खप्पर, चिलम ही इनके संपत्ति हैं तथा श्मशान भूमि में ही वास करते हैं, कैलाश जो शिव जी का निवास स्थल हैं, दिव्य श्मशान के ही श्रेणी में आता हैं। परन्तु शिव लय तथा प्रलय दोनों को अपने अधीन किये हुए हैं। इनकी पत्नी या शक्ति, स्वयं आद्या शक्ति काली के अवतार, पार्वती या सती हैं तथा दो पुत्र कार्तिक, गणेश और पुत्री अशोक सुंदरी तथा मनसा (मन से उत्पन्न होने के परिणामस्वरूप मनसा नाम वाली) हैं। अधिक जाने
हिन्दू धर्म से संबंधित नाना तथ्यों-कथाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर, प्रचार-प्रसार करना।