चराचर जगत के निर्माण, पालन, संहार करने वाली प्रथम शक्ति, आद्या शक्ति महा-माया, योग-निद्रा।

काली कुल की सर्वोच्च दैवीय शक्ति, "आद्या शक्ति महा काली", अंधकार से जन्मा होने के परिणामस्वरूप, यह शक्ति काले वर्ण वाली हैं।

इस चराचर ब्रह्माण्ड या जगत के उत्पन्न होने से पूर्व सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था, व्याप्त घनघोर अंधकार से उत्पन्न होने के कारण यह शक्ति आदि या आद्या, सनातन तथा सर्वप्रथम शक्ति हुई। ऐसा माना जाता हैं, अन्धकार से जन्मा होने के कारण देवी काले वर्ण वाली हैं परिणामस्वरूप इनका नाम 'काली' पड़ा तथा देवी! 'आद्या-काली' नाम से विख्यात हुई। समय अनुसार इन्होंने ही देवताओं तथा मनुष्यों के सन्मुख उपस्थित हुए नाना समस्याओं के निदान हेतु भिन्न-भिन्न अवतार धारण किये, इन्हीं में से इनके एक अवतार का नाम 'महा-काली या दक्षिणा काली' हैं।

समस्त चराचर ब्रह्माण्ड, तीनों लोकों को जन्म देने वाली "आद्या शक्ति काली"।

इस संपूर्ण चराचर जगत अथवा तीनों लोकों की उत्पत्ति के कारक, देवी आद्या शक्ति काली ही बानी। अंधकार से जन्म धारण करने के पश्चात, इनके मन में इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जन्म देने की प्रेरणा जाग्रत हुई और देवी इस निमित्त उद्धत हुई। इसी प्रेरणा शक्ति को श्री गणेश भी कहाँ जाता हैं, जिसका सम्बन्ध किसी कार्य के शुभ प्रारम्भ हेतु हैं। इन्हीं आद्या शक्ति की प्रेरणा अनुसार ही ब्रह्मा जी ने संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया। ब्रह्माण्ड में ऊर्जा संचय हेतु सूर्य देव का निर्माण किया गया, जिनके ऊर्जा के कारण ही समस्त चराचर जगत विद्यमान, अस्तित्व में। हैं। त्रिगुणात्मक प्राकृतिक गुणों की सृष्टि की गई, जो सत्व, रज तथा तम नाम से जानी गई तथा समस्त जीवित तथा अजीवित तत्वों के क्रमशः उत्पन्न, पालन और संहार का कारक बानी। इन गुणों के निमित्त स्वामी तथा कार्यभार के अनुसार 'त्रि-देवो (ब्रह्मा, विष्णु, महेश या शिव) तथा त्रि-देविओ (महा लक्ष्मी, महा सरस्वती, महा काली)' को इन्हीं देवी ने प्रकट किया। तीनों लोकों के सुचारु सञ्चालन हेतु, ३३ कोटि या प्रकार के देवताओं, प्रजापतियों, ग्रह तथा नक्षत्र, सम्पूर्ण जीवित तथा अन्य तत्वों का जन्म इन्हीं देवी के प्रेरणा स्वरूप हुई।

'काल' जो स्वयं ही मृत्यु के कारक देवता हैं, उनका भी भक्षण करने में समर्थ हैं देवी महा-काली।

महाविद्यायों में प्रथम स्थान पर विद्यमान महाशक्ति महा-काली, भयंकर स्वरूप वाली।

काली माँ

देवी महा-काली का भौतिक स्वरूप।

देवी का स्वरूप अत्यंत भयानक तथा डरावना हैं, विभिन्न ध्यान मंत्रों के अनुसार देवी का स्वरूप अत्यंत विकराल हैं। देवी, प्राण-शक्ति स्वरूप में शिव रूपी शव के ऊपर आरूढ़ हैं, जिसके कारण जीवित देह शक्ति सम्पन्न या प्राण युक्त हैं। देवी अपने भक्तों के विकार शून्य हृदय (जिसमें समस्त विकारों का दाह होता हैं) में निवास करती हैं, जिसका दार्शनिक अभिप्राय श्मशान से भी हैं। देवी श्मशान भूमि (जहाँ शव दाह होता हैं) वासी हैं।

घोर काले वर्ण वाली देवी काली, अपने विकराल दन्त पंक्ति द्वारा मुंह से निकली हुए लपलपाती लाल रक्त वर्ण जैसी जिह्वा को दबाये हुए हैं, जो अत्यंत भयंकर प्रतीत हो रही हैं। दुष्ट दानवों का रक्त पान करने के परिणामस्वरूप इनकी जिह्वा लाल रक्त वर्ण की हैं। देवी का मुखमंडल तीन बड़ी-बड़ी भयंकर नेत्रों से युक्त हैं, जो सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि के प्रतीक हैं। इनके ललाट पर अमृत के सामान चन्द्रमा स्थापित हैं, काले घनघोर बादलों के समान बिखरे केशों के कारण देवी अत्यंत भयंकर प्रतीत हो रहीं हैं। स्वभाव से ही दुष्ट असुरों के हाल ही में कटे हुए सरो या मस्तकों कि माला इन्होंने अपने गले में धारण कर रखी हैं तथा प्रत्येक सर से रुधिर (रक्त) धारा बह रही हैं। अपने दोनों बाएँ हाथों में इन्होंने खड़ग तथा दुष्ट मानव (असुर) का कटा हुआ सर धारण कर रखा हैं तथा बाएँ हाथों से यह सज्जनों को अभय तथा आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। देवी दिगम्बरी हैं, कही-कही देवी अपनी लज्जा निवारण हेतु युद्ध में मारे गए दानवों के कटे हुए हाथों की माला बनाकर करधनी के रूप में धारण करती हैं । अपने भैरव महा-काल या पति शिव के छाती में देवी प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये खड़ी हैं, जैसे स्वयं काल का भी भक्षण करने हेतु उद्धत हो। देवी ने अपने कानों में मृत शिशु देह, कुंडल स्वरूप हैं धारण कर रखा हैं, इनके चारों ओर सियार कुत्ते दिखते हैं तथा रक्त की धर बहती हैं, हड्डियाँ बिखरी हुई हैं, देवी रुधिर (रक्त) प्रिय हैं।
मुखतः देवी अपने दो स्वरूपों में विख्यात हैं, 'दक्षिणा काली' जो चार भुजाओं से युक्त हैं तथा 'महा-काली' के रूप में देवी की २० भजायें हैं।

देवी की देह पतली तथा जहरीले दांत हैं, जोर से अट्टहास करती हैं जो शब्द बड़ी ही घनघोर प्रतीत होकर दुष्टों के हृदय को विदीर्ण कर देती हैं। देवी पागल महिला के स्वरूप में नृत्य करने के कारण, अत्यंत भयानक शारीरिक उपस्थिति प्रस्तुत करती हैं। कटे हुए राक्षसों के मस्तकों की माला पहनने, भूत तथा प्रेतों के साथ श्मशान भूमि में निवास करने के कारण, देवी अन्य सभी देवी देवताओं में भयंकर प्रतीत होती हैं।

देवी का नाम 'काली' पड़ने का कारण।

कालिका पुराण के अनुसार, सभी देवता एक बार हिमालय में मतंग मुनि के आश्रम के पास गए और आद्या शक्ति या महामाया की स्तुति करने लगे। सभी देवताओं द्वारा की गई वंदना तथा स्तुति से देवी अत्यंत प्रसन्न हुई तथा एक काले रंग की विशाल पहाड़ जैसी स्वरूप वाली दिव्य स्त्री देखते ही देखते सभी देवताओं के सनमुख प्रकट हुई। वह स्त्री देखने में अमावस्या के अंधकार जैसी थी इस कारण उस शक्ति का नाम 'काली' पड़ा।
वास्तव में देवी, शिव पत्नी पार्वती के देह से उत्पन्न हुई थीं, जिनका पूर्व में सर्वप्रथम घोर अन्धकार से उत्पत्ति होने के कारण आद्या काली नाम पड़ा था।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी कालाष्टमी कहलाती हैं, इस दिन सामान्यतः महा-काली की पूजा, आराधना की जाती हैं या कहे तो पौराणिक काली की आराधना होती हैं, जो दुर्गा जी के नाना रूपों में से एक हैं। परन्तु तांत्रिक मतानुसार, दक्षिणा काली या आद्या काली की साधना कार्तिक अमावस्या या दीपावली के दिन होती हैं, शक्ति तथा शैव समुदाय इस दिन आद्या शक्ति काली के भिन्न-भिन्न स्वरूपों की आराधना करता हैं। जबकि वैष्णव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन, धन-दात्री महा लक्ष्मी की आराधना करते हैं।

काली के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।

कालिका पुराण के अनुसार, देवी काली के दो स्वरूप हैं, प्रथम 'आद्या शक्ति काली' तथा द्वितीय केवल पौराणिक 'काली या महा-काली'
दक्षिणा काली जो साक्षात् आद्या शक्ति ही हैं, अजन्मा तथा सर्वप्रथम शक्ति हैं, जिनसे पूर्व में इस चराचर जगत की उत्पत्ति हुई थी, देवी ही चराचर जगत की स्वामिनी हैं।
द्वितीय 'देवी दुर्गा या शिव पत्नी सती, पार्वती' से सम्बंधित हैं तथा देवी के भिन्न-भिन्न अवतारों में से एक हैं, यह वही हैं जिनका प्रादुर्भाव मतंग मुनि के आश्रम में देवताओं द्वारा स्तुति करने पर अम्बिका के ललाट से हुआ था तथा जो तमोगुण की स्वामिनी हैं। परन्तु, वास्तविक रूप से देखा जाये तो दोनों शक्तियाँ एक ही हैं।
दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डये पुराण के अंतर्गत एक भाग, आद्या शक्ति के विभिन्न अवतारों की शौर्य गाथा से सम्बंधित पौराणिक पाठ्य पुस्तक), के अनुसार एक समय समस्त त्रि-भुवन (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्य भाइयों के अत्याचार से ग्रस्त थे। दोनों समस्त देवताओं के अधिकारों को छीनकर उसका स्वयं ही भोग करते थे, देवता स्वर्ग विहीन इधर-उधर भटकने वाले हो गए थे। समस्या के समाधान हेतु, सभी देवता एकत्र हो हिमालय में गए और देवी आद्या-शक्ति, की स्तुति, वंदना करने लगे। परिणामस्वरूप, 'कौशिकी' नाम की एक दिव्य नारी शक्ति जो कि भगवान शिव की पत्नी 'गौरी या पार्वती' में समाई हुई थी, लुप्त थी, समस्त देवताओं के सनमुख प्रकट हुई। शिव अर्धाग्ङिनी के देह से विभक्त हो, उदित होने वाली वह शक्ति घोर काले वर्ण की थी तथा काली नाम से विख्यात हुई।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा (जिन्होंने दुर्गमासुर दैत्य का वध किया था), ने शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महा राक्षसों को युद्ध में परास्त किया तथा तीनों लोकों को उन दोनों भाइयों के अत्याचार से मुक्त किया। चण्ड और मुंड नामक दैत्यों ने जब देवी दुर्गा से युद्ध करने का आवाहन किया, देवी उन दोनों से युद्ध करने हेतु उद्धत हुई। आक्रमण करते हुए देवी, क्रोध के वशीभूत हो अत्यंत उग्र तथा भयंकर डरावनी हो गई, उस समय उनकी सहायता हेतु उन्हीं के मस्तक से एक काले वर्ण वाली शक्ति का प्राकट्य हुआ, जो देखने में अत्यंत ही भयानक, घनघोर तथा डरावनी थी। वह काले वर्ण वाली देवी, 'महा-काली' ही थी, जिन का प्राकट्य देवी दुर्गा की युद्ध भूमि में सहायता हेतु हुई थी। चण्ड और मुंड के संग हजारों संख्या में वीर दैत्य, देवी दुर्गा तथा उनके सहचरियों से युद्ध कर रहे थे, उन महा-वीर दैत्यों में 'रक्तबीज' नाम के एक राक्षस ने भी भाग लिया था। युद्ध भूमि पर देवी ने रक्तबीज दैत्य पर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्रों से आक्रमण किया, जिससे कारण उस दैत्य रक्तबीज के शरीर से रक्त का स्राव होने लगा। परन्तु, दैत्य के रक्त की टपकते हुए प्रत्येक बूंद से, युद्ध स्थल में उसी के सामान पराक्रमी तथा वीर दैत्य उत्पन्न होने लगे तथा वह और भी अधिक पराक्रमी तथा शक्तिशाली होने लगा। देवी दुर्गा की सहायतार्थ, देवी काली ने दैत्य रक्तबीज के प्रत्येक टपकते हुए रक्त बूंद को, जिह्वा लम्बी कर अपने मुंह पर लेना शुरू किया। परिणामस्वरूप, युद्ध क्षेत्र में दैत्य रक्तबीज शक्तिहीन होने लगा, अब उसके सहायता हेतु और किसी दैत्य का प्राकट्य नहीं हो रहा था, अंततः रक्तबीज सहित चण्ड और मुंड का वध कर देवी काली तथा दुर्गा ने तीनों लोकों को भय मुक्त किया। देवी, क्रोध-वश महा-विनाश करने लगी, इनके क्रोध को शांत करने हेतु, भगवान शिव युद्ध भूमि में लेट गए। देवी नग्नावस्था में थीं तथा इस अवस्था में नृत्य करते हुए, जब देवी का पैर शिव जी के ऊपर आ गया, उन्हें लगा की वे अपने पति के ऊपर खड़ी हैं तदनंतर, लज्जा वश देवी का क्रोध शांत हुआ तथा जिह्वा बहार निकल पड़ी।

महा-काली से सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य।

देवी काली की आराधना, पूजा इत्यादि भारत के पूर्वी प्रांत में अधिकतर लोकप्रिय हैं, देवी वहां समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा पूजिता हैं, विशेषतः जनजातीय, निम्न जाति तथा युद्ध कौशल से सम्बंधित समाज की देवी अधिष्ठात्री हैं। जहां-तहा देवी काली के मंदिर देखे जा सकते हैं, प्रत्येक श्मशान में देवी काली का मंदिर विद्यमान हैं तथा विशेष तिथियों में पूजा, अर्चना होती हैं। चांडाल जो की हिन्दू धर्म के अनुसार, श्मशान में शव के दाह का कार्य करते हैं एवं अन्य शूद्र जातियों की देवी अधिष्ठात्री हैं। डकैती जैसे अमानवीय कृत्य करने वाले भी देवी की विशेष पूजा करते हैं, सामान्यतः डकैत, डकैती करने हेतु प्रस्थान से पहले देवी काली की विशेष पूजा आराधना करते थे। देवी का सम्बन्ध क्रूर कृत्यों से भी हैं, परन्तु यह क्रूर कृत्य पूर्व तथा वर्तमान जन्म में अर्जित के दुष्ट कर्म के जातकों हेतु ही हैं। हिन्दू धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर आधारित हैं, केवल मानव देह धरी या जातक को अपने नाना जन्मो के कुकर्मों के कारण कष्ट-दुःख तथा सुकर्मों के कारण सुख भोगना ही पड़ता हैं।
पूर्वकाल में डकैत, देवी के निमित्त भव्य मंदिरों का निर्माण करवाते थे तथा विधिवत पूजा आराधना की संपूर्ण व्यवस्था करते थे। आज भी भारत वर्ष के विभिन्न प्रांतों में ऐसे मंदिर विद्यमान हैं, जहां डकैत देवी काली की आराधना, पूजा इत्यादि करते थे। हुगली जिले में डकैत काली-बाड़ी, जलपाईगुड़ी जिले की देवी चौधरानी (डकैत) काली बाड़ी इत्यादि, प्रमुख डकैत देवी मंदिर हैं।
स्कन्द (कार्तिक) पुराण, के अनुसार 'देवी आद्या शक्ति काली' की उत्पत्ति आश्विन मास की कृष्णा चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि के घोर में अंधकार से हुई थीं। परिणामस्वरूप अगले दिन कार्तिक अमावस्या को उन की पूजा-आराधना तीनों लोकों में की जाती हैं, यह पर्व दीपावली या दीवाली नाम से विख्यात हैं तथा समस्त हिन्दू समाजों द्वारा मनाई जाती हैं। शक्ति तथा शैव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन देवी काली की पूजा करते हैं तथा वैष्णव समुदाय महा लक्ष्मी जी की, वास्तव में महा काली तथा महा लक्ष्मी दोनों एक ही हैं। भगवान विष्णु के अन्तः कारण की शक्ति या संहारक शक्ति 'मायामय या आदि शक्ति' ही हैं, महालक्ष्मी रूप में देवी उनकी पत्नी हैं तथा धन-सुख-वैभव की अधिष्ठात्री देवी हैं।
अग्नि तथा गरुड़ पुराण के अनुसार महा-काली की साधना-आराधना, युद्ध में सफलता और शत्रुों पर विजय प्राप्त करने के हेतु की जाती हैं।
दस महा-विद्याओं में देवी काली, उग्र तथा सौम्य रूप में विद्यमान हैं, देवी काली अपने अनेक अन्य नमो से प्रसिद्ध हैं, जो भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाली हैं। देवी काली मुख्यतः आठ नमो से जानी जाती हैं और 'अष्ट काली', समूह का निर्माण करती हैं।
  • १. चिंता मणि काली
  • २. स्पर्श मणि काली
  • ३. संतति प्रदा काली
  • ४. सिद्धि काली
  • ५. दक्षिणा काली
  • ६. कामकला काली
  • ७. हंस काली
  • ८. गुह्य काली

देवी काली 'दक्षिणा काली' नाम तथा स्वरूप से सर्व सदाहरण में सर्वाधिक पूजिता हैं।

देवी काली के दक्षिणा काली नाम पड़ने के विभिन्न कारण।
  • सर्वप्रथम 'दक्षिणा मूर्ति भैरव' ने इन की उपासना की, परिणामस्वरूप देवी, दक्षिणा काली के नाम से विख्यात हुई।
  • दक्षिण दिशा की ओर रहने वाले 'यम या धर्म राज, देवी का नाम सुनते ही भाग जाते है परिणामस्वरूप देवी, दक्षिणा काली के नाम से जानी जाती हैं। तात्पर्य है, मृत्यु के देवता यम-राज जिनका राज्य या यम लोक दक्षिण दिशा में विद्यमान है, मृत्यु पश्चात जीव-आत्मा यम दूतों द्वारा इन्हीं के लोक में लाई जाती हैं जहाँ जीव के कर्म-अनुसार उसे दण्डित किया जाता हैं तथा अगले जन्म का निर्धारण होता हैं। यम राज तथा उनके दूत, देवी काली के भक्तों से दूर रहते है, मृत्यु पश्चात यम दूत उन्हें यम लोक नहीं ले जाते हैं।
  • समस्त प्रकार के साधनाओं का सम्पूर्ण फल 'दक्षिणा' से ही प्राप्त होता हैं, जैसे गुरु दीक्षा तभी सफल हैं जब गुरु दक्षिणा दी गई हो। देवी काली, मनुष्य को अपने समस्त कर्मों का फल प्रदान करती हैं या सिद्धि प्रदान करती हैं, तभी देवी को दक्षिणा काली के नाम से भी जाना जाता हैं।
  • देवी काली वार प्रदान करने में अत्यंत चतुर हैं, यहाँ भी एक कारण हैं की उन्हें दक्षिणा काली कहा जाता हैं।
  • हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, पुरुष को ‘दक्षिण’ तथा स्त्री को ‘बामा’ कहा जाता हैं। वही बामा दक्षिण पर विजय पाकर मोक्ष प्रदान करने वाली होती हैं, कारणवश देवी अपने भैरव के ऊपर खड़ी हैं।
देवी काली दो कुल, जो 'रक्त तथा कृष्ण' वर्ण में अधिष्ठित हैं, कृष्ण या काले स्वरूप वाली 'दक्षिणा' कुल से तथा रक्त या लाल वर्ण वाली 'सुंदरी' कुल से सम्बंधित हैं। मुख्यतः विध्वंसक प्रवृत्ति धारण करने वाले समस्त देवियाँ 'कृष्ण या दक्षिणा कुल' से सम्बंधित हैं। देवी काली का घनिष्ठ सम्बन्ध विध्वंसक प्रवृत्ति तथा तत्वों से हैं, जैसे देवी श्मशान वासी हैं, मानव शव-हड्डी इत्यादि मृत देह से सम्बंधित तत्त्वों से सम्बद्ध हैं। भूत-प्रेत इत्यादि प्रेत योनि को प्राप्त जीवों या विध्वंसक सूक्ष्म परा जीव, देवी के संगी साथी तथा सहचरी हैं। यहाँ देवी नियंत्रक भी हैं तथा स्वामी भी, समस्त भूत-प्रेत इत्यादि, इनकी आज्ञा का उलंघन कभी नहीं कर सकते। समस्त वेद इन्हीं देवी की भद्र काली रूप में स्तुति करते हैं, निष्काम या निःस्वार्थ भक्तों के माया रूपी पाश को ज्ञान रूपी तलवार से काट कर मुक्त करती हैं।

देवी काली को सम्बोधित करने वाली नाना शब्दों का तात्पर्य या अर्थ।

श्मशान वासिनी: तामसिक, विध्वंसक प्रवृत्ति से सम्बंधित रखने वाले देवी-देवता, मुख्यतः श्मशान भूमि में वास करते हैं। व्यवहारिक दृष्टि से श्मशान वह स्थान हैं, जहाँ शव के दाह का कार्य होता हैं। परन्तु आध्यात्मिक या दार्शनिक दृष्टि से श्मशान का अभिप्राय कुछ और ही हैं, यह वह स्थान हैं, जहाँ पांच या पञ्च महा-भूत, चिद-ब्रह्म में विलीन होते हैं। आकाश, पृथ्वी, जल, वायु तथा अग्नि इन महा भूतों से, संसार के समस्त जीवों के देह का निर्माण होता हैं या देह इन्हीं पांच महाभूतों का मिश्रण हैं। श्मशान वह स्थान हैं जहाँ, इन पांचो भूतों के मिश्रण से निर्मित देह अपने-अपने तत्व में विलीन हो जाते हैं। देवी काली, तारा, भैरवी इत्यादि देवियाँ श्मशान भूमि को अपना निवास स्थान बनती हैं, इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यह हैं कि! आध्यात्मिक दृष्टि से श्मशान विकार रहित हृदय या मन का प्रतिनिधित्व करता हैं। मानव देह कई प्रकार के विकारों या पाशों का स्थान हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, स्वार्थ इत्यादि, अतः देवी उसी स्थान को अपना निवास स्थान बनती हैं जहाँ इन विकारों या व्यर्थ के आचरणों का दाह होता हैं। मन या हृदय वह स्थान हैं जहाँ इन समस्त विकारों का दाह होता हैं अतः देवी काली अपने उपासकों के विकार शून्य हृदय पर ही वास करती हैं।
चिता : मृत देह के दाह संस्कार हेतु, लकड़ियों के ढेर के ऊपर शव को रख कर शव दाह करना, चिता कहलाता हैं। साधक को अपने श्मशान रूपी हृदय में सर्वदा ज्ञान रूपी अग्नि जलाये रखना चाहिए, ताकि अज्ञान रूपी अंधकार को दूर किया जा सके।
देवी का आसन : देवी शव रूपी शिव पर विराजमान हैं या कहे तो शव को अपना आसन बनाती हैं, जिसके कारण ही शव में चैतन्य का संचार होता हैं। बिना शक्ति के शिव, शव के ही सामान हैं, चैतन्य हीन हैं, देवी की कृपा लाभ से ही देह पर प्राण रहते हैं।
करालवदना या घोररूपा : देवी काली का वर्ण घोर या अत्यंत श्याम वर्ण (काला) हैं तथा स्वरूप से भयंकर तथा डरावनी हैं। परन्तु देवी के साधक या देवी जिन के हृदय में स्थित हैं, उन्हें डरने की आवश्यकता नहीं हैं, स्वयं काल, यमराज देवी से भयभीत रहते हैं।
पीनपयोधरा : देवी काली के स्तन बड़े तथा उन्नत हैं, यहाँ तात्पर्य हैं कि देवी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से तीनों लोकों का पालन करती हैं। अपने अमृतमय दुग्ध को आहार रूप में दे कर देवी अपने साधक को कृतार्थ करती हैं।
प्रकटितरदना : देवी काली की विकराल दन्त पंक्ति मुंह के बहार दिखाई देती हैं, उन दाँतो से उन्होंने अपने जिह्वा को दबा रखा हैं। यहाँ देवी रजो तथा तमो गुण रूपी जिह्वा को, सत्व गुण के प्रतीक उज्ज्वल दाँतो से दबाये हुए हैं।
बालावतंसा : देवी काली अपने कानों में बालक के शव रूपी अलंकार धारण करती हैं या कहे तो बच्चों के शव को देवी कानों के अलंकार रूप में धारण करती हैं। यहाँ देवी बालक स्वरूपी साधक को सर्वदा अपने समीप रखती हैं, बाल्य भाव देवी को प्राप्त करने का सर्व शक्तिशाली साधन हैं।
मुक्तकेशी : देवी के बाल, घनघोर काले बादलों की तरह बिखरे हुए हैं और ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे कोई भयंकर आंधी आने वाली हो, जो प्रलय से सम्बंधित हैं।

संक्षेप में देवी काली से सम्बंधित मुख्य तथ्य।

  • मुख्य नाम : महा-काली।
  • अन्य नाम : दक्षिणा या दक्षिण काली, कामकला काली, गुह्य काली, भद्र काली इत्यादि।
  • भैरव : महा-काल, मृत्यु के कारक देवता।
  • तिथि : आश्विन कृष्ण अष्टमी।
  • भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान विष्णु।
  • कुल : काली कुल।
  • दिशा : सभी दिशाओं में।
  • स्वभाव : उग्र, तामसी गुण सम्पन्न।
  • वाहन : लोमड़ी।
  • तीर्थ स्थान या मंदिर : कालीघाट, कोलकाता, पश्चिम बंगाल। ५१ सती पीठों में एक।
  • कार्य : समस्त प्रकार के कार्यों का फल प्रदान करने वाली।
  • शारीरिक वर्ण : गहरा काला, श्याम वर्ण।

दक्षिणा काली

काली

महाकाली

महाकाली